माँ - प्यार, स्नेह और त्याग का एक भावनात्मक शिखर
Mother is not just a word but an emotion, a symbol of love and sacrifice. This poem is dedicated to all the mothers in the world and tries to highlight a few of the key aspects of their life.

माँ- एक एहसास
हर पल का हिसाब रखती है, फलों को सवारी है ।
माँ इतनी ही प्यारी होती है, जो हर पल दुलारती है ।
लाख बाधाएं हो मगर, हंसकर ही तुम्हें निहारती है ।
दुखो का जाल क्यों न बिछा हो सर पर कितना ।
वक्त के कोमल हाथों की थपकियों से वह प्यार करती हैं ।
वक्त वक्त का हो या ना हो पर माँ हर वक्त होती हैं ।
कभी ख्वाबों में, कभी खयालों में, तो कभी दिन के उजालों में ।
कभी छांव में, कभी धूप में, तो कभी गृहणी के काम काजो में ।
कभी चूल्हें के आगे, तो कभी खेत खलिहानो में ।
सब कुछ करके भी, कुछ करने का अंहकार नहीं होता ।
आखिर मां तो मां है जिसका विकल्प कोई यार नहीं होता ।
समय बदला, परिस्थितियां बदली और बदल रही अब सोच ।
स्वार्थी मानव ने मां पर ही किया ना जाने कितनें प्रयोग ।
समझदारों ने गुहार लगाई अहंकारी ने उनको समझायी ।
समझ, समझ कर फिर ना समझे फिर बोले उनको यह राश न आयी ।
आखिर कहां छुपा दी गई, मां की वेवश तन्हाई ।
देख पुत्र की मनोदशा मां को क्रोध भी ना आ पाया ।
माँ फिर खुद ही मनोदशा को बतलाया ।
आखिर अपना ही लाल है जिसे मैंने है अपने प्यार से नहलाया ।
अपमान और तिरस्कार का घूँट भी मां के प्यार को ना कम कर पाया ।
इसीलिए तो यह शब्दांश प्रस्फुटित हो पाया ।
आखिर माँ तो माँ है इसका स्थान जहाँ में और कौन ले पाया । ।
सादर
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