**Friendship Day Special***
मित्रता एक शब्द नही बल्कि परिभाषित रिस्तो का superset और संसाररूपी भवर में जीवनरूपी नौका की वो पतवार है जिसके होने से हम है और ना होने ग़म है और जीवन की कल्पना करना भी ओछि आदत सी प्रतीत होती है
कभी कभी सोचता हु जीवन कैसा होता यदि हे सखा/मित्र /बांधव तुम ना होते/होती ।अपनी हर स्थिति को (ख़ुशी , दुःख , प्यार ,ग़ुस्सा ,धोखा ) शायद हर कोई इंही अपनो से हर दिन दो चार हो रहा है।इसलिए लगता है मित्र वो जवाहरात हैं जो अच्छे मिल गये तो आपको बुलंदी मिलना सिर्फ़ समय का खेल रह जाता है अन्यथा गर्त में डुबना भी ।
मित्रता की व्यापकता इतनी है की इनको अनेक संबंधो मे परिभाषित करना पड़ा है जिसे पिता , पुत्र ,पती , पत्नी , भगिनी इत्यादि ।अर्थात् मित्र के बिना जीवन एक बिना सींग के हिरन की कपोल कल्पना सा सिर्फ़ रह जाता है
वैसे तो हम मित्रों से ही घिरे मिलते हैं हर दिन , रूप कुच भी हो सकता है तो इस दिन की ज़रूरत क्या पड़ी, क्या यह दिखवा है ऐसे प्रसन सच भी है और झूठ भी ।सच इसलिए की आज social media आपके कितने मित्र हैं बस किताबों में समेटे उस ज्ञान की तरह जो आपको कभी मदद तो करने से रही नही जब आप को उसकी ज़रूरत हुई और झूठ इसलिए क्यूँकि बीज को सही अंकुरित होने के लिए उचित परिस्थितियों की ज़रूरत होती है वैसे ये छोटे छोटे मौक़े दोस्तों से हमरी यादों का गुलसता बना जाते हैं और हम खुद को उनके ज़्यादा क़रीब पाते हैं
बचपन से आज तक जीवन मे एक समानांतर सत्ता का जो अभुदय हुआ का सिलसिल्ला अभी भी जारी है अंतर सिर्फ़ इतना सा शायद आया है की आज इन रिस्तो को परिभासित बहुधा किसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु किया जाता है जबकि बाल्यकाल में बस जुड़ने के लिए ।
मित्रता की असल ज़िंदगी में परीक्षा जब सुरु होती है तो बहुत ख़ास लोग आम हो जाते है और बहुत आम लोग ख़ास , क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्या होता है क्या यह वो लोग हैं जो बदल गये हैं या आपका या हमारा भ्रम हैं और ऐसा क्या करे जिससे हमें ऐसा दिन कम से कम देखना पड़े जिससे विस्वास की धज्जियाँ उड़े और हम तमासवीन बन इन परिघटनावो का अवलोकन करें आज जब हम phone calls, social media से एक दूसरे को इतना क़रीब पा रहे हैं तो हमें खुद से अपने ख़ास दोस्तों की priority लिस्ट बनानी ही चाहिए जिससे की हमें किसको मिस्स नही करना है इस भाग दौड़ में यह सुनिस्चित कर सकें अन्यथा सपनो के चक्कर में अपनो को मिस करके हम बहुत कुछ खो देते हैं
अंत मे दोस्ती विस्वास का दूसरा नाम है और इसमें परस्परसूझ-बूझ और सम्मान की ज़रूरत के साथ साथ एक दूसरे की भावनावो का ख्याल रखना अनिवार्य शर्त है और इन सबकी नीव का प्रमुख आधार ईमानदारी हैं दोस्त बनाना इस दुनिया मेन बेहद आसान काम है परंतु सच्चा दोस्त जो ग़लत पर डाट सके और सही पर प्रोत्साहन दे सके ऐसा पाना बहुत मुसकिल है परंतु हरेक के पास होता ज़रूर है ख़याल करिए वो कौन है जताइए मत परंतु निभाइए ज़रूर ऐसों का साथ
Note- उपर्युक्त पंकित्या लेखक के अपने विचार हैं असहमति या त्रुटि हेतु लेखक को ज़िम्मेदार नह ठहराया जा सकता है