क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है
This blog is related to the behavior of people at various day to day aspects and after also
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***क्यकी मुझे लगता ऐसा लगता है क्या आपको भी कभी ऐसा लगा ***
1. जब हम सब्ज़ी किसी छोटी सी दुकान से ख़रीदते है जिसकी जीविका का वो दुकान ही एक मात्र आधार है तो इतना ही तो ज़्यादा है बोलकर १ किलो की जगह १.१ किलो तक को उसी दाम मे ले लेते हैं परंतु ५ ग्राम कम है तो बिल्कुल नहीं। और दाम में किया जाने वाला मोल भाव तो बस ऐसा किया जाता है जैसे फ़्री में दे दिया जाय धनिया, पुदिनहरा या और ऐसे किसी सामान की बात तो छोड़ दो वो gift मे लेना अपना हक़ समझते है।
वही जब kisi moll या supermarket से लेते हैं तो दाम और qty जो उसने बोल दिया ख़ुशी ख़ुशी देते भी है और thankyou भी बोल कर आते है।
2. अक्सर रिक्शे वाले से बात करते वक़्त यह समझ नही आता है लोग ५-१० रुपये के लिए झिक झिक करते नज़र आते हैं परंतु cab या अन्य ऐसे जगहो पर बिना पुछे ही माँगे गये रुपयों को दे देते हैं जीविका हेतु प्रताड़ित लोगों के साथ यह भी सोच न्याय संगत नही लगती।
3. एक ढाबे में खाते समय प्याज़ फ़्री में मागने में कोई शर्म नही आती और उत्तम सेवा जी उससे बन पाती है करने के बावजूद फला restraurent बहुत अच्छा था कह कर उसकी बेज़्ज़ती की जाती है और भूल जाते है की फला जगह और इस जगह दिए गये पैसों में ज़ामिन आसमान का फ़रक है
साथ ही वहाँ जितना टिप दिए थे उतना तो यहा का पूरा बिल है।
4. दीवाली में जिन झालरों का प्रचलन बढ़ गया है और socalled candales, crackers और अन्य सौकीन के सामानो का use करते हैं सब तो ठीक है यदि हम घर से बने हुए दिए (मिट्टी ) का प्रयोग करे तो साथ मे अपने और किसी और के घर को भी रौसन करेगा।
5. आज का दौर तो और ही नया हो गया है एक रुपए भिखारी को देने पर भी सेल्फ़ी , किसी के लिए कुछ कर दिया तो एहसान जताना पड़ता। है नही तो उसकी कोई क़ीमत ही नही रहती lockdown मे तो इस रोग ka सबसे बिकराल रूप दिखा मानो लोगों me दिखाकर समाज सेवा करने की होड़ लगी हो।
ऐसा नही है duniya में सब इसी सोच के है क्यकी जहाँ बुरे लोग इस समाज में अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं वहींअच्छे लोग भी हैं जो बहुत कुछ कर जा रहे है और गुमनाम रह कर । ऐसे में उनकी भावनावो और आदर्शों को अपनाना ही एक मात्र हम जैसे छोटों ka कर्तब्य होना चाहिए स्थिति चाहे कुछ भी हो ।
याद रखिए हम और आप इस सुंदर धरा पर तो कुछ लाए थे na lekr जाएगे बस किराए के कमरे में रहने आए है और वापस चले जाना है अपने को शायद यह भी नही पता की आए कहा से थे और jaana कहा pr हैं तो हम क्यू na खुद से khud को उन कार्यों मे लगा दे जिससे हमें सुकून प्यार और jeene की चाहत मिलती है और जिससे milta है अमरत्व।
“ कितने दुःख की बात है की इंसान jis ख़ुशी की तलाश में ज़िंदगी का हर कदम उठाता है बचपन से हर दिन उसी को स्थायी ना रखकर क्षणिक बनाता चला जाता है और कुछ चीज़ों को ख़ुशियों के मिलने का रास्ता मान बैठता है
आप original थे आप वही रहो किसी की copy करके अपनी ज़िंदगी को उलझानो मे मत फ़सावो क्यकी आपकी बेसब्री और पीड़ा या सुख को सिर्फ़ आप समझते हो कोई और तो उपहास कर सकता है बस “
सादर
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