शिक्षा तब और अब...
This is an effort to make a comparative study of the education system and output in brief.
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आधुनिक शिक्षा पद्धति और परिणाम में नंबरों का सैलाब
आज जब शिक्षा पद्धति का वैदिक ,19वीं सदी और 21वीं सदी की शिक्षा पद्धति का अवलोकन करते हैं तो पता चलता है कि बहुत कुछ बदल गया है यह बदलाव निम्नवत रूप में प्रकट होता है
1. वैदिक काल में जहां मूल्यों पर शिक्षा का प्रभाव हुआ करता था वहीं आज आजीविका पाना शिक्षा का मुख्य उद्देश्य हुआ करता है जिसकी वजह से मूलता मन वचन और कार्यों में एकाग्रता देखी जाती थी परंतु आज तीनों में भिन्नता
2. शिक्षा पद्धति अच्छी है या बुरी है वाद विवाद का विषय नहीं होना चाहिए परंतु क्या कारण है की आधुनिक शिक्षा पद्धति से पहले हम भावनात्मक ,गुणात्मक तथा मानसिक रूप से इस तरह जुड़े थे की बचपन में जिस माता-पिता ने हमारा भरण पोषण और ख्याल रखा उनकी वृद्धावस्था में हम उनका उसे बढ़कर ख्याल रखने की चेष्टा करते थे मानसिक stress क्या है कभी इस शब्द का उल्लेख तक नहीं होता था बातों की एक अहमियत हुआ करती थी गाड़ी नहीं थी परंतु किलोमीटर हम पैदल चल रहे थे प्रतिदिन बात नहीं करती थी फिर भी हम जुड़े हुए थे बातों में दिखावापन नहीं हुआ करता था शायद हम श्रेष्ठ समाज को परिभाषित कर रहे थे परंतु ऐसा क्या हो गया की आधुनिक शिक्षा पद्धति के आने से हमारी मूल संस्कृति विलुप्त होती नजर आ रही है और क्या यह या ऐसा होना तार्किक है दीर्घकालीन मानव हित में है हमारी संस्कृति जिसका आज हम परचम उठाकर लहरा रहे हैं क्या आगामी भविष्य में हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए हितकारी होगा अगर नहीं तो हमें क्या सुधार करने की जरूरत है
3. ज्यादा नहीं अगर हम सिर्फ 20 साल के अंको का अध्ययन करें तो पता चलता है जहां एक सामान्य बच्चा 60 से 70% अंको को पाता था आज वहीं सामान्य बच्चा शत प्रतिशत तक अंकों को प्राप्त कर रहा है विभिन्न बोर्ड या संस्थाएं जो प्रतिफल प्रदान करती हैं मैं मानो होड़ सी लगी है प्रश्न यह है कि क्या शत प्रतिशत अंक देने से बच्चों के भविष्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जहां एक तरफ इनका मनोबल तो बढ़ रहा है परंतु पता चलता है कि आज का 80% तक पाने वाला बच्चा उन सामान्य कालेजों में दाखिला पाने में असमर्थ है जहां पहले 70% तक पाने वाला बच्चा आसानी से पा जाता था ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या बच्चों के एवरेज intelligence में वृद्धि हो गई है या फिर इसके शिकार हो रहे हैं reason कुछ भी परंतु कहीं ऐसा ना हो जाए कि नंबर की इस बंदरबांट में बच्चों का मनोबल इतना बढ़ जाए कि वह अपनी रुचि को त्याग कर आगे बढ़ते जाएं और अगर ऐसा होता है तो दीर्घकालीन बरसों में उनके बेरोजगार होने, दुखी होने होने तथा निराश होने का खतरा बढ़ जाएगा और ऐसे लोगों कुछ गलत कदम उठाने के शिकार होंगे क्योंकि जिन्होंने असफलता को देखा नहीं उनके लिए उस उम्र में जबकि जुनून तो सब कुछ करने का होता है परंतु सोचने की क्षमता और तार्किक अभिव्यक्ति की क्षमता कमतर ही होगी और ऐसे में कुछ भी करना उनके लिए उचित प्रतीत होगा
4. अभिभावकों को भी यह समझने की जरूरत है की सिर्फ अच्छे प्रतिशत लाना है जीवन का एकमात्र उद्देश्य नहीं हुआ करता है और ना ही अच्छा प्रतिशत लाने वाला बच्चा इतिहास में सब कुछ कर पाया है ज्यादातर ड्रॉपआउटस क्या एवरेज स्टूडेंट जिन्होंने जीवन में संघर्ष को देखा है ने अपने कार्यों द्वारा इतिहास को रचा है अतः बच्चों के साथ बैठकर उनके गुरुओं या उसके घनिष्ठ मित्रों से उसकी अभिरुचि का पूर्ण अध्ययन करके कि उसके भविष्य के कार्यो की रूपरेखा तय की जानी चाहिए अन्यथा 1 दिन ऐसा आएगा जब वह बच्चा अपनी अभिरुचि का काम ना कर पाने से कुछ भी कर सकता है शायद अच्छा या फिर शायद बुरा परंतु उस समय भी उसमें कॉन्फिडेंस का अभाव होगा जोकि दीर्घकालीन समाज और खुद उस परिवार के लिए अच्छा नहीं साबित होगा इसलिए अपने बच्चे की तुलना मिस्टर एक्स के बच्चे से करना बंद किया जाए हर बच्चा यूनीक है उसमें अपनी अलग से खूबियां है यह हर परिवार को समझना होगा
5. मुझे लगता है कि पूरे देश में एक बहस होनी चाहिए की निवर्तमान शिक्षा पद्धति कैसी हो मूल्यांकन का तरीका क्या है और हर तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनानी चाहिए जिससे आगामी 50 वर्षों का लक्ष्य निर्धारित हो और उसे कैसे प्राप्त किया जा सके और हां यह शिक्षा पद्धति इतनी फ्लैक्सिबल होनी चाहिए कि सारे बोर्ड को संपूर्ण देश में एक ही शिक्षा पद्धति मारने के लिए प्रेरित किया जा सके
नोट- यह लेखक के अपने विचार हैं इसमें किसी भी त्रुटि के लिए लेखक जिम्मेदार नहीं है
सादर
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